उत्तराखंड में चमोली जिले के हेलंग से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पंचकेदार में पांचवां केदार- कल्पेश्वर। उर्गम घाटी में स्थित कल्पेश्वर मंदिर समुद्र तल से लगभग 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा पंचकेदार में से एकमात्र है जो श्रद्धालुओं के लिए साल भर खुला रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भोलेनाथ ने यहां स्थित कुंड से समुद्र मंथन के लिए जल पात्र में जल दिया, जिससे चौदह रत्नों की उत्पत्ति हुई,…

दुर्वासा ऋषि ने यहां स्थित कल्पवृक्ष के नीचे भगवान शिव की तपस्या की थी, जिस कारण इसे कल्पेश्वर नाम दिया गया है। कल्पेश्वर को कल्पनाथ नाम से भी जाना जाता है। यहां हर वर्ष शिवरात्रि को विशेष मेला भी लगता है। मंदिर में भगवान शिव के जटा रूप की पूजा की जाती है। एक विशालकाय चट्टान के नीचे छोटी-सी गुफा में स्थित मंदिर के गर्भगृह की यूं तो फोटो खींचना मना है लेकिन नेत्ररूपी कैमरे से देखने पर उस जगह की दिव्यता व भव्यता का एहसास होता है,…
मंदिर के अंदर जिस जगह भगवान शिव के जटा रूप की पूजा होती है, उसके चारों ओर लिपटी रुद्राक्ष की माला शिव का जाप-सा करती प्रतीत होती है। चांदी का छत्र जटाओं को छांव देता-सा मालूम होता है। वहीं एक ओर भगवान गणेश व दूसरी ओर जटाओं से लिपटे नाग ऐसे प्रतीत होते हैं मानों भगवान शिव के प्रहरी हों। मंदिर के प्रांगण में भगवान शिव से जुड़े नंदी, त्रिशूल, डमरू, भस्म, शिवलिंग इत्यादि की पूजा होती है। प्रांगण में स्थित दो छोटे मंदिरों में से एक में कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव-पार्वती व उनके बगल में बैठे गणेश जी की पूजा होती है, वहीं दूसरे मंदिर में हनुमान जी की पूजा-अर्चना की जाती है। सावन के महीने में हजारों श्रद्धालु कल्पेश्वर मंदिर में दर्शनार्थ आते हैं,..
