बदरीनाथ धाम के कपाट बंद करने के लिए रावल क्यों धारण करते हैं स्त्री का भेष, जानें प्राचीन कथाएं

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 बदरीनाथ धाम के कपाट के लिए 25 नवंबर दोपहर 2:56 बजे बंद करने की परंपरा शुरू की जाएगी. यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि भक्तों में गहराई और आस्था का प्रतीक भी है. कपाट बंद होने की प्रक्रिया 21 नवंबर को विधिवत पूजा के साथ शुरू होगी. 21 नवंबर को भगवान गणेश की विशेष पूजा के साथ पहला चरण शुरू होगा. पूजा प्रक्रिया की शुरुआत के साथ बदरीनाथ धाम में ही स्थित प्राचीन गणेश के मंदिर के सबसे पहले कपाट बंद किए जाएंगे, जो इस अनूठी परंपरा का पहला चरण होता है. इस दिन का महत्व इसलिए भी खास है क्योंकि गणेश जी को आरंभकर्ता कहा जाता है. पूजा क्रम की शुरुआत इन्हीं से होती है. यानी भगवान बदरीनाथ तभी बैकुंठ या कहे विश्राम में जाएगे, जब गणेश जी की पूजा अर्चना होगी.

वेद-पाठ समाप्ति और पुस्तक बंदी: 23 नवंबर का दिन विशेष पौराणिक महत्व रखता है. इस दिन खांडू (खड़क) पुस्तक जिसे पारंपरिक रूप से वेद ग्रंथों का प्रतीक माना जाता है, बंद की जाएगी. यह परंपरा इस विश्वास को दर्शाती है कि 23 नवंबर से 25 नवंबर तक वेद पाठ नहीं किया जाएगा. इस प्रकार शास्त्रों की आवाज एक तरह से विराम लेती है. 24 नवंबर को श्री महालक्ष्मी का आवाहन किया जाएगा. जबकि 25 नवंबर की सुबह भगवान बदरी विशाल का पवित्र विग्रह पीले पुष्पों से सुसज्जित होकर श्रृंगार किया जाएगा. इस श्रृंगार का महत्व गहरा है, क्योंकि यह बंदी रस्म में अंतिम चरणों की तैयारी का प्रतीक माना जाता है.

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कपाट बंदी से पहले एक और परंपरा बदरीनाथ धाम में होती है. पूर्व मुख्य पुजारी (रावल) स्त्री का भेष धारण करते हैं. सखी भाव में माता लक्ष्मी को गर्भगृह में प्रवेश कराने के लिए यह एक बहुत ही समृद्ध और प्रतीकात्मक रस्म है. इस रस्म में देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु यानी भगवान बैकुंठ के साथ गर्भगृह में विराजमान कराया जाता है….

इस परंपरा के दौरान रावल तन पर साड़ी ओढ़कर महिला भेष धारण करके ही माता लक्ष्मी को ठीक वैसे ही प्रवेश कराते हैं, जैसे कोई सखी साथ हो. इसके बाद जैसे ही वह गर्भगृह में पहुंचेंगी, कुबेर, उद्धव और गरुड़ को विग्रह पूजा के लिए बाहर लाया जाता है. यानी लक्ष्मी के पहुंचने के बाद तीनों की गर्भगृह से बाहर ही पूजा होती है. ये सभी परंपरा बेहद रोचक और महत्त्व के साथ-साथ बड़ी आध्यात्मिक के साथ की जाती है.

बंदी और स्थानांतरण: 25 नवंबर दोपहर 2:56 बजे पंच पूजा की परिणति (अंतिम प्रक्रिया) में बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे. यह समय मंदिर समिति द्वारा पारंपरिक पंचांग गणना के अनुसार तय किया गया है. कपाट बंद होने के बाद मूर्तियां और विग्रह एक विशिष्ट स्थान पर ले जाए जाते हैं…

कुबेर और उद्धव का विग्रह पांडुकेश्वर स्थित योग ध्यान बद्री मंदिर में 6 महीनों तक पूजा अर्चना के लिए रखा जाएगा. जबकि गरुड़ और आदि शंकराचार्य की गद्दी को जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में शीतकालीन पूजा के लिए स्थापित किया जाएगा. यह पूरी प्रक्रिया न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह मौसम की कठिनाइयों के कारण मंदिर बंद रहने के कारणों को भी दर्शाती है. हिमालयी क्षेत्र में सर्दियों में बर्फबारी इतनी तीव्र हो जाती है कि खुला मंदिर और नियमित पूजा अनायास ही संभव नहीं होता है.